Yoga

आत्मसाक्षात्कार

आत्मसाक्षात्कार

ऋषि कहते हैं आत्मसाक्षात्कार ही मनुष्य जीवन का लक्ष्य है , बात थोड़ी अटपटी लगती है कोई बाहरी हो उसका साक्षात्कार करना हो उससे मिलना हो तो समझ आता है कि  हा हम कभी उससे मिले नहीं , लेकिन स्वयं  से तो हम रोज मिलते हैं बल्कि ज्यादा समय हम स्वयं  के ही ख्यालो में खोये रहते हैं ,स्वयं की ख़ुशी ,स्वयं  के दुःख  , स्वयं  का मा न, अपमान और घमंड, अब और किस तरह से स्वयं  से मिले और अगर स्वयं से मिलना ही जीवन लक्ष्य है तो वो तो हमने कबका पा लिया।   शास्त्र  कहते हैं तुम…
Read More
आसन 

आसन 

अष्टांग योग का तीसरा अंग है आसान , वास्तव  आजकल हम अपने आस पास योग के नाम पर जो कुछ भी देख रहें हैं उसमे से ज्यादातर आसान ही है ,आसान  को शरीर की बाह्य समाधि में सहायक  माना जाता है। वास्तव में आसन के शारीरिक लाभ को वजह से आसन ज्यादा प्रसिद्ध हुए अलग अलग तरह के रोगों से शरीर को बचाने के लिए और रोग को दूर करने के लिए आसन उपयोगी हैं , योग साधना के अंतर्गत आसन की साधना की जाती है शरीर को ध्यान अवस्था  समय तक बैठे रहने  लिए , महर्षि पतंजलि आसान के…
Read More
नियम क्या हैं ?

नियम क्या हैं ?

अष्टांग योग का दूसरा  अंग है नियम  ,नियम  के पांच उपांग है या यूँ कहे इन पांच चीजों की साधना ही नियम की साधना है , महर्षि पतंजलि लिखते हैं  शौचसंतोषतपः स्वधायेश्वरप्रणिधानानि नियमाः।  अर्थात शौच ,संतोष ,तपस्या ,स्वाध्याय और ईश्वर प्रणिधान नियम हैं।   १.  शौच :-              शौचं तु द्विविध प्रोक्तं बाह्यमभ्यन्तरन्तथा।  मृदजलाभ्याम स्मृतं बाह्यं मनः शुद्धिस्तथान्तरम।। शरीर और मन के मैल को दूर करने का नाम ही शौच है। शौच अर्थात सफाई दो तरह की मानी गई है पहली है बाह्य (बाहर की ) जल ,मिटटी (उस समय के हिसाब से) आदि से शरीर…
Read More
 योग 

 योग 

योग क्या है ? योग संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ है जुड़ना या जोड़, गणित की कक्षा में हम सबने सीखा होगा योग जिसमे हम दो अंको को एक दूसरे में जोड़ते थे यहाँ भी योग का वही अर्थ है।   फिर बात आती  है किसको किससे जुड़ना है और जोड़ के बाद जिस  तरह  हमें गणित  में योगफल  के रूप में एक चौथी  संख्या  मिलती थी जिसमे वो दोनों ही संख्या  निहित रहती थी किन्तु वो कुछ तीसरी ही संख्या होती थी , उसी तरह इस योग के अंत में क्या योगफल  मिलेगा ?  योगीजन इसे आत्मा का परमात्मा  से …
Read More