योग 

योग क्या है ?

योग संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ है जुड़ना या जोड़, गणित की कक्षा में हम सबने सीखा होगा योग जिसमे हम दो अंको को एक दूसरे में जोड़ते थे यहाँ भी योग का वही अर्थ है। 

 फिर बात आती  है किसको किससे जुड़ना है और जोड़ के बाद जिस  तरह  हमें गणित  में योगफल  के रूप में एक चौथी  संख्या  मिलती थी जिसमे वो दोनों ही संख्या  निहित रहती थी किन्तु वो कुछ तीसरी ही संख्या होती थी , उसी तरह इस योग के अंत में क्या योगफल  मिलेगा ? 

योगीजन इसे आत्मा का परमात्मा  से  जुड़ जाना बताते हैं और  योगफल में मिलती है आत्मसाक्षात्कार ,समाधि , चिदानंद स्थिति  या आप जिस भी नाम से इसे जानना चाहे। किन्तु आज के इस समय में हर व्यक्ति को ये बात समझ भी नहीं आती  की आत्मसाक्षात्कार  क्या है क्यों जरुरी है सो यदि योग का यही उद्देश्य है फिर तो वो योग ही क्यों करे ?

वास्तव में योग में आत्मा से परमात्मा का मिलान अंतिम स्थिति है, उसके पहले आपका  योग खुद से होगा , आप योग करते हुए खुद को ही बेहतर तरीके से जानेंगे आप परमात्मा से मिलने से पहले खुद से मिलेंगे , योग करते करते आप देखेंगे की आप अनायास ही खुद को समझने लगे हैं आप अपने शरीर को, अपनी  स्वास प्रस्वास को अपने क्रियाकलापों को बेहतर ढंग से समझने लगेंगे और दूसरे शब्दों में कहे तो आप खुद के प्रति और अपनी  चेतना के प्रति  जागरूक होने लगेंगे। और जैसे जैसे आपका अपने से योग होने लगेगा तो आपका आपके अस पास की हर वस्तु से योग होने लगेगा आपके रिश्ते धीरे धीरे हर तरह हर जिव से बेहतर होने लगेंगे ,जीवन में एक विशेष अनुभव की उत्पत्ति होगी। 

योग क्यों करें ?

योगसूत्र  के रचयिता महर्षि पतंजलि लिखते हैं  

योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः “

योग से चित्त वृत्ति का निरोध  होता है , इसे समझने  से पहले आपको समझना होगा चित्त क्या है  उसकी वृत्तियाँ क्या क्या हैं? इन सब की चर्चा किसी और ब्लॉग में हम करेंगे  इस ब्लॉग में हम इतना  समझे की योग से आपकी मानसिक अशांति दूर होगी अज्ञान  का जो आवरण  हमारे  मन पर पड़ा ह धीरे धीरे वो दूर होगा।  

लेकिन  आजकल हम योग के नाम  पर योगासन करते  हैं  तो इसलिए हमें उससे  होने वाले फायदे  को ही जांनने  की ज्यादा जरुरत है बाकि चीजों को  धीरे धीरे जैसे हम  योग में आगे बढ़ेंगे तो हमें स्वतः  ही अनुभव होने लगेगा। 

 योगासन  करने से हमें तरह  तरह  की बीमारियों  से छुटकारा  मिलता  है और साथ ही नई बीमारियां हमारे शरीर को नहीं लगती हैं ,प्राणायाम से हम अपने सांसो पर बेहतर नियंत्रण पाते हैं जिससे हमें अपनी भावनाओं और दूसरी मनःस्थितियों पर बेहतर नियंत्रड मिलता हैं , योगासनों से हमारा शरीर स्वस्थ बनता है , बेहतर रक्त संचार होता है ,शरीर पर जमी हुई चर्बी (मोटापा) कम होता है , हमारे शरीर के अंतस्रावी ग्रंथिया बेहतर ढंग से काम करती हैं जिससे हमें बहुत से रोगो जैसे थायरॉइड आदि जो की हमारे शरीर में हार्मोन्स की सही स्त्राव के न होने से होती हैं उनसे छुटकारा मिलेगा। 

वास्तव में योगासन हमारे सम्पूर्ण शारीरिक विकाश में सहायता करता हैं , प्राचीन काल में हमारे देश में योग हर व्यक्ति की दिनचर्या का हिस्सा था अगर हमें हमेशा सुखी और स्वस्थ रहना है तो निश्चित ही रोज योग करना होगा। 

यदि आप अलग अलग बहुत से योगासन  पाते हैं  तो सूर्यनमस्कार तो रोज जरूर करे। 

योग के अंग  ?

महर्षि पतंजलि लिखते हैं 

” यमनियमासनप्राणायामप्रत्याहारधारणाध्यानसमाधयोsष्टावङ्गानि “

यम, नियम ,आसन ,प्राणायाम ,प्रत्याहार ,धारणा ,ध्यान ,समाधि  ये योग के अंग हैं। इन सभी अंगो के उपांग भी है। 

१. यम  यम के अंतर्गत आते  हैं  सत्य ,अहिंसा ,अस्तेय(चोरी न करना) , ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह (आवस्यकता से अधिक संग्रह न करना ) . 

२. नियम के अंतर्गत आते हैं शौच (आतंरिक और बाह्य शुद्धि ),संतोष,तप,स्वाध्याय ,और ईश्वर प्रणिधान (ईश्वर शरणागति ) | 

३. आसन इसके अंतर्गत हठयोग में बहुत से अलग अलग तरह के आसन बताये गए हैं ,हम अपने आस पास योग के नाम पर जो भी देखते हैं उनमे से ज्यादातर चीजें आसान ही हैं वास्तव में आसनों से ही हमारा शरीर स्वस्थ बनता है और तरह तरह बीमारिया हमसे दूर होती हैं। आसान का अभ्यास किया जाता हैं ताकि हम लम्बे समय तक धयान में बैठ सके। 

४. प्राणायाम  का मतलब है प्राण का विस्तार प्राण के विस्तार से हमारे जीवन का विस्तार होता है और हम लम्बा जीवन जीते हैं । हम अलग अलग तरह के प्राणायाम करके अपने स्वास ,प्रस्वास पर नियंत्रण प्राप्त करते हैं ,हमारे स्वास की गति सीधे तौर पर हमारे मन को प्रभावित करती है धीरे धीरे स्वास पर नियंत्रड करके हम अपने मन पर भी नियंत्रड करते हैं। 

५. प्रत्याहार इन्द्रियों को उनके विषयो से हटाकर अंदर की तरफ समेट लेने का नाम ही प्रत्याहार है ,स्वभावतः इन्द्रिया बाहर की तरफ होती हैं जैसे आंख हमेशा बाहर ही देखती है,कान बाहर के ही शब्द सुनते हैं , उसे वापस करके अपने अंतर्मन में देखने को,अपने अंतर की ध्यानियों को सुनने में लगाने को  ही प्रत्याहार कहते हैं। 

६. धारणा  किसी भी प्रिय वस्तु को अपने अंतर्मन में देखने या उसपर ही  एकाग्र करने का ही नाम धारणा हैं , हमारा मन हर वक्त हजार तरह की चीजे सोचता रहता है , धारणा के अभ्यास से हम उसे एक ही विषयवस्तु के बारे में विचार करने का अभ्यास करते हैं। जैसे आप किसी अपने देवता की मूर्ति का मानस दर्शन कर सकते हैं ,उनके बारे में ही सोच सकते हैं ,या आप ॐ का ध्यान कर सकते हैं, कुछ लोग चक्रो पर ध्यान करते हैं. 

6. ध्यान  धारणा करते करते जब एक स्थिति अति है जब हर वक्त आपको ध्येय का ही विचार रहता है उसके बीच कोई और विचार नहीं आता और साथ ही अपने स्वयं के चित्त का भी नाश हो जाता है यही स्थिति ध्यान कहलाती है। 

८. समाधि  यह योग की अंतिम स्थिति है वास्तव में योग का मूल उद्देश्य ही समाधि ही है समाधि में ही आपकी आत्मा का परमात्मा से मिलन होता है। 

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