Dharm

धर्म  क्या है?
यह एक सवाल है जो हमेशा से मानव मन को परेशान करता रहा है ,अपने इस सवाल के जवाब को ढूढने के लिए वो हमेशा से प्रयाशरत  रहा कभी इस का जवाब ढूढने के लिए वो जंगलो में गया कभी हिमालय की गुफाओं में।बहुत से लोगो को इसका जवाब मिला और जिनको मिला इन्होंने दुसरो को बताया जैसे गौतम बुद्ध जी महाराज ,महावीर स्वामी  और इनके जैसे न जाने कितने लोगो ने बताया की धर्म क्या है ,इन्होंने बताया की मनुष्य जीवन किस लिए मिला है आपका क्या कर्तव्य है इस जीवन के  प्रति।इनसे भी पहले यानि की मनुष्य जीवन की धरती पर सुरुवात के समय भी कई ऋषि महर्षि हुए जिन्होंने धर्म की व्याख्या और परिभाषा  दी जैसे महर्षि  वेदव्याश ,महर्षि वाल्मीकि ,कणाद  मुनि ,मनु जी महाराज , महर्षि याग्वल्क  और बहुत से महर्षि हुए जिन्होंने धर्म को जाना और इसे मानव मात्र की भलाई के लिए सबको बताया।
इन्होंने जो धर्म की परिभाषा दी वो मानव की भलाई के लिए थी इन्होंने “सर्वे भवन्तु सुखिनः” और ” वसुधैव कुटुम्बकम्”  जैसी बातें कही और धर्म को मानवता  से जोड़ा धर्म को  मनवता की भलाई के और सम्पूर्ण संसार के विकास के साधन के लिए उपयोग किया।


किन्तु वर्तमान समय में स्थिति  पूरी तरह अलग हो चुकी है आज धर्म का उपयोग लोग अपने निजी स्वार्थ के लिए कर रहे है जिसको जिस व्याख्या से लाभ हो रहा है वो धर्म की वही व्याख्या  दे रहा है। आज धर्म का प्रयोग एक वस्तु  के रूप में किया जा रहा है ,आज धर्म सिर्फ एक साधन है लाभ कमाने का ,कभी कोई  राजनेता इसका उपयोग अपने वोट बैंक बढ़ाने  के  लिए  करता है तो कभी कोई तथाकथित बाबा अपने चेलो और भक्तो की संख्या बढ़ने के लिए। 
आज के ज़माने लोग इतने व्यस्त हैं की उन्हें धर्म के बारे में सोचने या विचार करने का समय नहीं मिलता उनके लिए जो बाबा ने कह दिया है वो सही है चाहे वो बाबा झूठा  फ्रॉड हो या मासूम बच्चियों से रेप करने वाला हो या फिर खुद को किसी देवी या देवता का अवतार बताने वाला /वाली हो। 
आज इंसान धर्म से इतना अंजान  है की धर्म के बारे में कुछ कहने में उसे डर लगता है धर्म के बारे में सवाल करने में उसे डर लगता है ,वो मंदिर मस्जिद में जाता है प्यार के कारण  नहीं डर  के कारण , कुछ मांगने के लिए जाता है । आज मनुष्य को ये समझने की जरुरत है या तो धर्म को अच्छी  तरह समझले या फिर उसे छोड़ दे या तो भगवान् से प्यार करे या फिर भगवान को मानना बंद कर दे। 
तो अब ये निर्णय  लेना होगा की धार्मिक बने या नास्तिक रहे ?  दोनों ही अच्छे हैं या पूर्ण धार्मिक बने या फिर पूर्ण नास्तिक किन्तु बीच की स्थिति में न रहें। यदि  ईश्वर हैं तो उनका साक्षात्कार करना ही जीवन का लक्ष्य है और आप उसके लिए पुरे मन और समर्पण से प्रयास करें। 

धार्मिक बनने से पहले ये जानना  बहुत जरुरी है की धर्म क्या है ?


साधारण  अर्थों  में “धर्म और कुछ नहीं सिर्फ जीवन जीने का तरीका है ” इसके आलावा जो भी कुछ भी वो और कुछ भी हो पर धर्म तो नहीं है ,धर्म के नाम पर लोगो को गुमराह करके उनसे गलत काम करवाना उन्हें अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करना ये धर्म नहीं है  ये व्यापार है। धर्म हमारा मूल स्वाभाव है धर्म वो सेतू है जो हमें हमारी आत्मा से जोड़ता है, वास्तव में आत्मा तो हमेशा से ही है लेकिन हम भूले पड़े हैं अपने उस मूल स्वरुप को, आध्यात्म हमें उस मूल स्वरुप से मिला देता है। ऋषि इसे कहते हैं आत्मसाक्षात्कार ,आत्म अर्थात स्वयं से मिलना तो क्या अभी हम स्वयं को नहीं जानते ? ऋषि कहते हैं तुमने स्वयं को कुछ और मान रखा है जिसे तुम तुम समझ रहे तुम वो नहीं हो , जो वस्तु हमें इस सत्य  का ज्ञान कराती है उसे ही धर्म  कहते हैं। 

आज हमे ये समझने की आवस्यकता है की वास्तव में धर्म क्या है क्यूकि जब तक हम खुद नहीं समझेंगे तब तक हम धर्म से डरते रहेंगे और जब तक हम धर्म से डरते रहेंगे तब तक चंद तथाकथित बाबा और दूसरे लोग हमारे डर का फायदा उठाते  रहेंगे। 

 धर्म क्या है ये कैसे पता चलेगा ?

शास्त्र कहते  हैं सद्ग्रन्थो का अध्ययन मनन,और गुरु  की कृपा ये बहुत जरुरी है आपको धर्म का ज्ञान करने के लिए लेकिनलेकिन बात आती है  ग्रन्थ कौन सा पढ़े ,गुरु मिले ही कहाँ पाखंडी भले मिल जाये , ऋषि कहते हैं  आप स्व का अध्ययन करके भी धर्म जान सकते हो वास्तव में एक बहुत ही बेहतर तरीका है दुनियाँ का सारा ज्ञान आपके अंदर है गुरु आप स्वयं हैं ,बुद्ध  कहते हैं “अप्प दीपो भव” , जीवन में आप जहां  है उस समाज आपको खुद समझना होगा की आपका धर्म क्या है  धर्म आपको कोई और नहीं बता सकता क्युकि  यदि कोई बताएगा  तो वो (कोई तथाकथित बाबा ) वह बातयेगा जिससे उसका  लाभ हो नाकि आपका  लाभ हो। 

और धर्म को समझना कोई इतना भी दुष्कर नहीं है , धर्म को समझना बहुत ही आसान है जैसे की एक मनुष्य होने के नाते हमारा धर्म है की स्वयं खुश रहे और दुसरो को भी उनकी खुशियाँ  पाने में सहायता करे ,अर्थात  मनुष्य होने के नाते ये पहले धर्म है  “जियो  और जीने दो ” ,सच बोले और  दुसरो के प्रति वफादार रहे  बस इतना सा ही धर्म है  एक मनुष्य होने के नाते सिर्फ इसका  पालन करे। 

जब तक आपको आपका धर्म कोई दूसरा बताता रहेगा तब तक आप परेशान  रहेंगे।

“याद रखे भगवान आपसे प्रेम करते हैं और वो आपसे सिर्फ प्रेम की आशा रखते हैं  अतः भगवान से डरे न , प्रेम करे और  जब आपको  भगवान से प्रेम होगा तो आपको भगवान की बनाई हर वस्तु  से प्रेम होगा और इस तरह ब्रह्माण्ड की प्रत्येक रचना से आपको प्रेम होगा क्युकी जो भी है वो भगवान ही है। “

हर हर महादेव। 

By Admin

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