DAR AUR INSHAN

इंसान और डर इनमें  से पहले कौन पैदा हुआ ये कहना थोड़ा मुश्किल है। शायद पेड़ो  पर  रहने वाले हमारे पूर्वजो को जब दूसरी जातियों (जानवर जातियों ) से  डर लगने लगा तो उन्होंने अपने अश्तित्वा को बचाने के लिए प्रयत्न  किये और शायद उन्हीं प्रयत्नों के फलस्वरूप वो दूसरे जानवरो से श्रेष्ठ बन गए या यु कहें  कि जानवर (बन्दर ) न रह कर इंसान बनने की राह पर निकल पड़े ।
        किन्तु मनुष्य बनने के बाद  ये डर  कम नहीं हुआ  बल्कि और बढ़ गया , अब उसने परिवार बनाये ,कबीले बनाये किन्तु फिर भी ये डर कम नहीं हुआ ,उसमें और दूसरे कबीलो में परस्पर मतभेद हुए और संघर्ष  आरम्भ  हुए। 
   डर  हर कबीले में था इसीलिये उनमे परस्पर संघर्ष होता रहा  अपने अश्तित्व को बचने के लिए स्वयं को भयमुक्त  करने के लिए ,  कबीलो या झुंडो के अपने नियम थे जो हर कबीले के अपने अलग थे। धीरे -धीरे  छोटे- छोटे कबीले मिलकर गॉव  बने  और इस तरह ग्राम्य  जीवन का आरम्भ हुआ किन्तु  मनुष्य ह्रदय के  भय  खत्म नहीं हुआ , वो डरता था दूसरे मनुष्यो से  जानवरो और प्रकृति  से भी , उसे काले बादलों में मौत की आशंका  दिखती थी ,आंधी तुफानो से उसे भय लगता था। अपने इस भय को दूर करने के लिए वो प्रकृति की पूजा करने लगा इन्हे शांत करने के उपाय के तौर पर ,वो उन्हें (प्राकृतिक शक्तियों  को )पूजता था ताकि वो नाराज ना हो उसपर (मनुष्यो ) ,इसके साथ ही साथ पूजने लगा वो प्रकृति के उन रूपों और जीव जंतुओं को जिससे उसे लाभ था  जैसे की उसने  चन्द्रमा को पूजा ,हवाओं,दिशाओ ,नक्षत्रो ,बादलो ,गाय ,बैल ,घोड़ो  आदि की पुजा की ,इन पूजाओं के मूल में कहीं इन जीवो के प्रति स्नेह था तो कहीं मनुष्य का डर। 
ग्राम्य  से नगर बने ,और जनपद और राज्य फिर राज्यों के संचालन \के लिए संचालक। किन्तु मनुष्य का भय अब भी समाप्त नहीं हुआ  बल्कि और भी बढ़ गया ,क्युकि मनुष्यता के विकाश के साथ साथ मनुष्य का लोभ भी बढ़ता गया और यह लोभ ही उसके भय का एक महत्वपृर्ण कारन बनता गया। प्रजा को राजा का भी था ,दंड का भय था ,धर्म का भय था ,धर्म जो उसने अपने भय को दूर करने के साधन के रूप में अपनाया था  वह भी अब उसके  भय का कारन बन गया  था । विभिन्न लोगो ने अपने अपने भिन्न भिन्न धर्म बना लिये थे  और हर धर्म गुरु अपने अपने धर्म वालो को डरा कर अपना काम सिद्ध कराते इन्ही धर्म गरुओं में कुछ अच्छे लोग भी थे जो मनुष्यो को सही  राह पर ले जाना चाहते थे किन्तु उनकी संख्या कम  थी दूसरे जो बुरे लोग थे ज्यादा संख्या में थे  उन्होंने मनुष्यों के भीतर बसे भय का पूरा लाभ उठाया और धर्म को एक भय के हथियार के रूप में इश्तेमाल किया। 
इन धर्म गुरुवों का राजाओं  और रईशो पर भी व्यापक प्रभाव   था ,क्युकी राजा और रईश भी मनुष्य ही थे और उनके मूल में भी  कही ना कहीं  सदियों से चली आ रही भय परम्परा वास करती थी। इन राजाओं ने अपने भय को दूर करने के लिए अपने धर्म को बढ़ाने के लिए दूसरे राज्यों पर आक्रमण किये और ये संघर्ष आज भी जारी है। 
आज के इस आधुनिक दौर में भी  मनुष्य अपने उस डर को छोड़ नहीं पाया या यु कहे डर  ने मनुष्य को नहीं  छोड़ा ,मनुष्य आज भी बाहरी साधनों के जरिये खुद को भयमुक्त करने के प्रयाश  में लगा हुआ है बिना ये जाने की ये भय उसके अंदर है ,मनुष्य का भय उसके अंदर है और वो वही से खत्म होगा बहुत से लोगो ने इसे जाना और  भयमुक्त भी हुए कित्नु सब लोग नहीं जान पाये  या शायद जानना ही नहीं चाहते। जब तक मनुष्य डरता रहेगा ये संघर्ष चलता रहेगा मनुष्य अपने भय को दूर करने के नीत नए उपाय ढूढ़ेगा और वही उपाय उसके भय को बढ़ाने के कारन बनेंगे।

….. अतः आप सदियों से अपने अंदर बसे भय को दूर करे और मदद करे दुसरो की भी उनके भय को दूर करने में क्युकी इसी तरह  संसार में चल रहे सारे संघर्ष दूर हो सकते हैं। 

हर हर महादेव 

By Admin

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