“वसुधैव कुटुम्बकम ” इक महान आदर्श या चेतावनी ?

 महोपनिषद के अध्याय 4 का श्लोक 71 ,

अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम् ।

उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् ।।

अर्थात यह मेरा है.यह पराया है ऐसी सोच छोटे चित्त वाले व्यक्तियो की होती है , उदार चरित्र के लोगों के लिए सम्पूर्ण संसार ही घर है ।

आज के हजारो  साल पहले जब हमारे महान ऋषि पूर्वजों ने इस श्लोक की रचना की होगी तो निश्चय ही उनके मन.में इक आदर्श समाज की अभिलाषा रही होगी ,निश्चय ही उन्होंने ने अपने अनुभव के आधार पर मनुष्यों को इक आदर्श समाज बनाने की परिकल्पना से ये श्लोक रचे होंगे ।

किन्तु आज के इस नये परिवेश में ये श्लोक  एक आदर्श  व्याक्य के साथ  ही एक चेतावनी भी है। 

वसुधैव कुटुम्बकम  अर्थात  सम्पूर्ण  संसार  ही आपका  परिवार  ये  व्याक्य आज  अपने  अर्थो में ज्यादा  परिपूर्ण है ,आज  के इस  आधुनिक युग में नए अन्य अविष्कारों  से हमने इस समाज को और भी पास ला दिया है। 

आज हम हजारो मील दूर बैठे अपने किसी जानने वाले से बड़ी आसानी से बात कर सकते , जरुरत पड़े तो कुछ ही घंटो में कई कई हजार किलोमीटर दूर बैठे लोगो से मिल भी सकते ,वास्तव में आज की इस आधुनिक तरक्की ने ही सही मायने में संसार को दुरी और समय की सीमाओं को मिटा कर पास  ला दिया है सही मायनो में धीरे धीरे संसार एक छोटे से परिवार जैसे आकर में सिमट रहा है। 

किन्तु जैसे जैसे सीमाएँ  सिमट रही हैं वसुधैव कुटुम्बकम्  का आदर्श हमारे सामने एक चेतावनी के रूप में भी आ रहा है , वास्तव में आज जब ये संसार एक परिवार की तरह बनता जा रहा तो इसके साथ ही हमारी जिम्मेदारी भी बढ़ती जा रही , संसार के किसी एक कोने में में होने वाली घटना से हमें कोई फर्क नहीं पड़ेगा ऐसा सोच कर  हम नहीं बैठ सकते। 

चीन के एक किसी सुदूर प्रान्त में शुरू हुआ कोरोना वायरस  इस चेतावनी  सबसे बड़ा उदाहरण है ,जिसने चीन के किसी के प्रान्त से शुरू होकर सम्पूर्ण विश्व को प्रभावित किया कोई भी देश ऐसा नहीं बचा जिसने कोरोना की मर न झेली हो। 

विश्व के किसी एक प्रान्त में होने वाली अशान्ति का असर हमारे ऊपर नहीं पड़ेगा हम ये नहीं सोच सकते छोटे से छोटे देशो के आपस में होने वाले युद्ध हर एक  प्रभावित करते हैं। 

आज के परिवेश में हम ये सोच कर शांति से नहीं बैठ सकते की हम सुखी हैं हम चैन से हैं जब तक विश्व के किसी भी कोने में सुख शांति की कमी है हमे खतरा हैं क्युकि वसुधैव कुटुम्बकम् है और कुटुंब का कोई सदस्य अशांत है तो सम्पूर्ण कुटुंब अशांत रहेगा। 

अध्यात्म कहता हैं ये सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड ही जुड़ा है ब्रह्माण्ड के किसी एक कोने में होने वाली घटना सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड पर असर डालेगी ,क्वांटम फिजिक्स भी कुछ ऐसी बात कर रहा। आज इस माहौल में हमें धर्म की अध्यात्म की ज्यादा जरुरत है क्युकि अध्यात्म ही हममे वो समझ विकसित कर सकता है जिसके लिए “वसुधैव कुटुंबकम” हो , ये निश्चय  है जैसे इस कुटुंब के एक  हिस्से की अशांति पुरे कुटुंब को अशांत  सकती तरह एक हिस्से की शांति ,अध्यात्म और ज्ञान कुटम्ब को शांति और ज्ञान सकता  है। 

By Admin

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