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“वसुधैव कुटुम्बकम ” इक महान आदर्श या चेतावनी ?

“वसुधैव कुटुम्बकम ” इक महान आदर्श या चेतावनी ?

 महोपनिषद के अध्याय 4 का श्लोक 71 , अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम् । उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् ।। अर्थात यह मेरा है.यह पराया है ऐसी सोच छोटे चित्त वाले व्यक्तियो की होती है , उदार चरित्र के लोगों के लिए सम्पूर्ण संसार ही घर है । आज के हजारो  साल पहले जब हमारे महान ऋषि पूर्वजों ने इस श्लोक की रचना की होगी तो निश्चय ही उनके मन.में इक आदर्श समाज की अभिलाषा रही होगी ,निश्चय ही उन्होंने ने अपने अनुभव के आधार पर मनुष्यों को इक आदर्श समाज बनाने की परिकल्पना से ये श्लोक रचे होंगे ।…
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